गिरिधारी राम गौंझू ' गिरिराज '
आज स्वतंत्रता दिवस का 73वां वर्ष है। आइए आपको ले चलते हैं लोहरदगा थाना, डाकघर और हाई स्कूल लोहरदगा । दिन था भारत छोड़ो आंदोलन 9 अगस्त 1942 का । क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे थे छेदीलाल आजाद । जन्म 22 जनवरी 1913 का। तब उम्र थी 29 वर्ष। क्रांतिकारी गीत रचना करना और आजादी के दीवानों को सुनाना नित्य का कर्म था। क्रांतिकारियों एवं आजादी के दीवानों की तस्वीरें बनाना, इन का शौक था। महात्मा गांधी ,सुभाष ,आजाद, भगत सिंह आदि की तस्वीरें लोहरदगा की दीवारों पर बोलती थीं।
इसी दिन 9 अगस्त 1942 को घर पर बेटी का जन्म हुआ। सुना, पर घर नहीं जा सके। उन्हें तो जाना था लोहरदगा थाने, डाकघर और हाई स्कूल के ऊपर भारतीय तिरंगा फहराने। चल पड़े क्रांति के गीतगाने।नवजवानों में क्रांति और स्वतंत्रता की वे आग धधकाते चलते थे। बेटी का नाम जुलूस रखना। इतना कह सूचना देने वाले को घर भेज दिया और स्वयं चल पड़े तिरंगा फहराने के लिए। वंदे मातरम, भारत माता की जय, भारत हमारा है, भारत छोड़ो,महात्मा गांधी की जय, आदि का नारा लगाते- लगाते आसमान को गुंजायमान करते थाना जा पहुंचे। सुबह के 9:00 बजे थे।। पुलिस को चकमा दे कर छेदीलाल आजाद ने यूनियन जैक उतार कर तिऱंगा फहरा दिया। ब्रिटिश सिपाहियों की नजर भीड़ पर थी।लगभग 400 टाना भगत और लोहरदगा के युवा भारत छोड़ो आंदोलन में आ मिले थे।।पावरगंज, अमला टोली होते जुलूस की भीड़ बढ़ती जा रही थी।
छेदी लाल आजाद , हाई स्कूल लोहरदगा के भवन के ऊपर चढ़ गए। इनका क्रांतिकारी गीत शुरू हुआ और विद्यालय के समस्त शिक्षक और विद्यार्थी भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े। विद्यालय की दीवार के बाहरी कोने पर ईंट जोड़ने के लिए ईंटे निकाली हुई थीं।इन्हीं ईटों के सहारे आजाद छत पर चढ़ गए। देखते ही देखते विद्यालय की छत पर उसने तिरंगा आकाश में लहरा दिया। गीत गाए, नारे लगे, महात्मा गांधी की जय, भारत माता की जय, भारत छोड़ो, भारत हमारा है आदि नारे हवा में निनादित हो रहे थे। नारों की आवाज ब्रिटिश फौज के कानोंमें टकराई।
एक मुसलमान दरजी के छप्पर पर छेदी लाल आजाद चढ़ गए। कई घरों के छप्परों को लांघते-फांदते एक शहतूत के पेड़ पर चढ़ गए। इस पेड़ से लोहरदगा डाक घर की छत पर वे चढ़ गये। छत से उतरने वाले पानी पाइप के ऊपर छेदी लाल आजाद ने तिरंगा झंडा को शान से आसमान पर उन्मुक्त लहरा दिया। नीचे भीड़ के क्रांतिकारी नारों से आकाश फटा जा रहा था। जुलूस आगे बढ़ती जा रही थी।
ब्रिटिश पुलिस की जीप फौज लेकर आ धमकी। लाठी बरसने लगी।भीड़ को तितर-बितर करने का प्रयास पुलिस व्यर्थ करती रही। पुलिस झंडा फहराने वाले को खोज रही थी उस भीड़ में। आजाद को खोज पाने में ब्रिटिश फौज असफल रही। छेदीलाल आजाद छत पर एक कोने में छिपे हुए थे। थाना, विद्यालय, डाकघर को संगीन धारी पुलिस घेर ली थी। उसे पकड़ने के लिए पुलिस द्वारा सरेंडर करने की बार-बार चेतावनी दी जा रही थी। छत से उतरते समय आजाद का साथी पकड़ा गया । मजिस्ट्रेट के धमकाने पर वह सब कुछ बताने लगा। छेदीलाल आजाद बगल में यह सब सुन रहे थे। उससे रहा ना गया। उसने अपने साथी की मुछें उखाड़ दी। फौज देखती रह गयी, आजादी के दीवाने की इस हरकत को। उसके मित्र को छोड़ दिया गया ।
छेदीलाल आजाद पकड़े गए। इन्हें 1 साल के कारावास की सजा मिली। फुलवारी शरीफ, पटना के जेल में इन्हें डाल दिया गया । इस जेल में 4000 आजादी के दीवाने बंदी बनाए गए थे , 9 अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में।
15 अगस्त 1947 को भारत देश आजाद हुआ। स्वाधीनता सेनानी चाहते थे कि स्वतंत्र देश में भारत का शासन, भारतीयों के द्वारा ,समस्त भारतीयों के लिए यहां की संस्कृति के अनुरूप समानता, बराबरी व सौहार्द से गांधीजी के सर्वोदय एवं हिंद स्वराज के अनुसार चले। सभी को आजाद देश में जीने , विकास करने और आगे बढ़ने का समान अवसर मिले। अंगरेजो के उपनिवेश की शासन व्यवस्था पूरी तरह दफन हो जाए।
क्रांतिकारी जेलों से मुक्त कर दिए गए। इंदिरा गांधी के समय छेदीलाल आजाद को ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया गया। परंतु इस आजाद और आजादी के दीवानों के सपनों का भारत नहीं बन पाया था। जिस आजादी को ये देखना चाहते थे ,वह कोसों दूर हो गया था। परिणाम हुआ इस वर्तमान आजादी से वे नाखुश थे।
छेदीलाल आजाद विक्षिप्त अवस्था में आ गये। इसी स्थिति में वे गुलामी के समय के क्रांतिकारी गीत गाते , सुनाते व भटकते रहते थे। उनके क्रांतिकारी गीतों को सुनने का अवसर मुझे कई बार मिला है ।आजादी के बाद उनके सपनों का देश, देश -हित में उछाल मार रहा था। क्रांतिकारियों की धमनी के लहू में क्रांति गीत उबाल लाते थे। उनके क्रांतिकारी गीत आप भी सुने ,जो उसने विद्यालय में तिरंगा फहराने के समय गया था ।क्या जोश, क्या जवानी ,क्या आक्रोश और देश की आजादी के लिए क्या समर्पण था, वह इस क्रांतिकारी गीत में सुनाई पड़ता है। तो आप भी सुने छेदीलाल आजाद के इस क्रांतिकारी गीत के नगमे को---
ऐ नगमये बेवतन सूली पर गाया जाता है
और आसमाने पीर का तख्ता हिलाया जाता है
तो देश जब आजाद होगा पंजये अगियार से
तो टोडियों को देश में भंगी बनाया जाएगा
ऐ सलामे ताजदारे जर्मनी ऐ हिटलरे आजम
फिदाए कौम सैदाए वतन ऐ रहबरे आजम
सुना होगा तू कि एक बदबक्तों की बस्ती है
जहां हर कौम जी करके भी जीने को तरसती है
और जहां इंसानियत भुथरी छुरी से जबह होती है
जहां नीली रेंदा ओढ़े खुदा की जात सोती है
और जहां सबके गरदनों में गुलामी खनखनाती है
जहां शाही फिजाएं हर जगह पर सनसनाती है
जहां हर कैद खाना लीडरों से भरा रहता है
जहां जुल्मी शिकारी काम अपना करता जाता है
जहां मजदूर मेहनत करके मजदूरी नहीं पाती
अगर भूले से पाती है तो पूरी नहीं पाती है
वो बस्ती उफ बस्ती जिसको हिंदुस्तान कहते हैं
और जहां बन बन के हकीम मगरबी हैवान होते हैं
तो आज मैं इन हैवानों का अफसाना सुनाता हूं
वतन के खाक पर कुछ खून के धब्बे बताता हूं
पहले हमारे देश में कभी जांबाज रहते थे
ऐ गरीबो, हम सबों के हमदमे दम साथ रहते थे
जिन्हें चलती हुई तलवार से डरना ना आता था
घरों पे बिस्तरे आराम के मरना ना आता था
तो यही कांटे हुकूमत की निगाहों में खटकती थी
तने नापाक पर उनका ऐ फोड़ा बन के पकती थी
गरज उस साम्राज्ञी भेड़िया झपटी जवानों पर
गिरी बिजली हवाएं खिरमानो और आसियानों पर
तो लुटेरों ने हमारे अकतरे जिस्म को लूटा
और वतन के वजूद करती आन को लूटा
सिराजे पाक लानत टीपुए जांबाज को मारा
जिन्होंने खून चूसा शेरेदिल झांसी की रानी की
कि जिस पर कुछ असर होता न था तेगों की पानी की
मसलन उस जलियांवाला बाग का मंजर
बरसाना छातियों पर गोलियों का दाग का मंजर
ओ डायर जिसने लाशों से सरे मैदान को पाटा
कि जिसका खून उधम के तिसलवे पिस्तौल को चाटा
भगत को उसने मारा क्योंकि वह जीना चाहता था वो
वतन के दुश्मनों का खून पीना चाहता था वो
तो कसम तुमको ,तो कसम तुमको मिटा दो
इस जहां से अब तुम्हें नामोनिशा उनका
उड़ा दो तोप पर रख करके उनको
गरुरे नौजवां उनका
जरा कुछ देर खूने आसमां हो जाए
खजाना लूट लो
दिल्ली और लंदन में कत्लेआम हो जाए
तो बर्किंघम का खबर देने अबर तू जाना
तो हमारे नाम आजाद के
नाम से एक गोला फेंकते आना।
छेदीलाल आजाद लोगों की दृष्टि में भले ही विक्षिप्त हो गए थे, परंतु आजादी के तराने वे भूले नहीं थे ।जब कभी उनको लगता वे क्रांति के गीत गाते और शहीदों के चित्र बनाते, बच्चों को दिखाते ,बनाते, क्रांति गीत सुनाते । असल में जिस स्वतंत्र भारत की इन्होंने एवं इनके साथियों ने कल्पना की थी वह कहीं से भी दिखाई नहीं दे रही थी। उसे पूरी ना होते देख वे बेचैन हो उठे थे ।उन्हें लगता था गोरे अंगरेज अपना बोरिया बिस्तर समेट कर चले गए पर छोड़ गए काले इंडियन और इनको छोड़ गये अंगरेजों की भाषा, शिक्षा और शासन व्यवस्था। इनको यह नागवार लगता था। स्वतंत्र भारत, फ्री इंडिया बन गया, जिसमें भारत के लिए वैसा ही स्थान रहा जैसे ब्रिटिश शासन काल में आम भारतीयों का था । इंडिया दिल्ली, महानगरों,प्रदेश की राजधानियों में विकास दिखाई देता है पर इस चकाचौंध से दूर, गांवों , किसानों का देश और भारत अत्यंत पिछड़ा उपेक्षित बना रहा। जहां बुनियादी सुविधाओं से गांव के किसान - मजदूर वंचित रहे। गांव को छोड़ नगरों- महानगरों ,राजधानियों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा, पर अंतिम व्यक्ति जो गांव में या शहरों नगरों महानगरों के झुग्गी-झोपड़ी केअंतिम व्यक्ति तक आजादी पहुंच नहीं पाई। इसी का दुख था छेदीलाल आजाद को ।इंडिया की गुलामी में भारत कब तक जकड़ा रहेगा। यही चिंता लिए 20 मार्च 1998 को वे इस संसार से हमेशा के लिए विदा हो गए। ऐसे और इनके जैसे अनेक अनाम शहीदों, देश भक्तों एवं स्वतंत्रता सेनानियों को हजार हजार जोहार।
(
15 अगस्त 1973 को छेदीलाल आजाद से की गयी बातचीत के आधार पर)
मो. 9631444940
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Chauraha.in
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