रांची: हिंदी पत्रकारिता के चार अहम काल हैं। आजादी से पहले के दौर में गांधी, नेहरु, माखननलाल चतुर्वेदी, गणेशशंकर विद्यार्थी आदि प्रमुख नाम सामने आते हैं, आजादी के बाद और खासकर साठ के दशक में पत्रकारिता लोहिया के असर में रही। इमरजेंसी और जेपी का प्रभाव और अब उदारीकरण के दिनों की पत्रकारिता। महत्वपूर्ण बदलाव यह रहा कि पहले पत्रकारिता सबसे कमजोर की आवाज़ हुआ करती थी, जबकि आज वो ...
झारखंड साहित्य की पड़ताल राधाकृष्ण की चर्चा के बिना पूरी की ही नहीं जा सकती है। राधाकृष्ण जी ने विपुल साहित्य रचा है उपन्यास, कहानी, आलेख, नाटक, व्यंग्य विधाओं में। संपादक भी वे आला दर्जे के थे।
भारतीय समाज में शास्त्रों की अहम भूमिका के बावजूद गुरु के महत्व को उससे ऊपर रखा गया है। यह महत्व यहां भी परिलक्षित होता है किह शास्त्र और लोक, संत और आचार्य, ज्ञानी और मूरख सबने गुरु के महत्व को स्वीकार किया है।
कविता को सृष्टि का स्पंदन कहा जा सकता है। इस सम्मोहक सृष्टि का श्री गणेश उसके रचयिता ब्रह्मा के मुख से निसृत मंगलाचरण अर्थात् कविता के मंगल-गान से ही हुआ। मनुष्य की हर धड़कन की अभिव्यक्ति का सामर्थ्य बोली की वाचिकता में होती है और पद्य बोलियों के सबसे नजदीक बैठता है।
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उर्वरक क्षेत्र की अग्रणी सहकारी संस्था इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) द्वारा वर्ष 2020 के ‘श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान’ के लिए कथाकार रणेन्द्र के नाम की घोषणा की गई है।
जीवन एक नाटक ही तो है। उसे कहानियों में रचता है कथाकार। और उन कथाओं में से कुछेक को नाटक में ढाल दिया है कलमकार कुमार संजय ने। नाटक लिखना इतना भी आसान नहीं। सब कुछ चंद दृश्यों, संवादों और चंद क्रियाकलापों से प्रकट कर देना होता
लोकनामा