पांचवें शैलप्रिया स्मृति सम्मान के अवसर पर बोले डॉक्टर वीर भारत तलवार
'जब आप स्थापित मान्यताओं को चुनौती देने लगें, जब आप परंपराओं पर सवाल उठाने लगें, तब मान लीजिए कि बदलाव और क्रांति की शुरुआत यहीं से हो जाती है। वंदना टेटे की कविताएं यह काम करती हैं!' झारखंड का प्रतिष्ठित शैलप्रिया स्मृति सम्मान वंदना टेटे को दिए जाने के ऑनलाइन कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जाने-माने आलोचक और झारखंड विशेषज्ञ डॉक्टर वीर भारत तलवार ने यह बात कही।
उन्होंने वंदना टेटे की कविताओं का उल्लेख करते हुए बताया कि ये कविताएं किस तरह अपनी परंपरा से मुठभेड़ ...
रांची: हिंदी पत्रकारिता के चार अहम काल हैं। आजादी से पहले के दौर में गांधी, नेहरु, माखननलाल चतुर्वेदी, गणेशशंकर विद्यार्थी आदि प्रमुख नाम सामने आते हैं, आजादी के बाद और खासकर साठ के दशक में पत्रकारिता लोहिया के असर में रही। इमरजेंसी और जेपी का प्रभाव और अब उदारीकरण के दिनों की पत्रकारिता। महत्वपूर्ण बदलाव यह रहा कि पहले पत्रकारिता सबसे कमजोर की आवाज़ हुआ करती थी, जबकि आज वो ...
झारखंड साहित्य की पड़ताल राधाकृष्ण की चर्चा के बिना पूरी की ही नहीं जा सकती है। राधाकृष्ण जी ने विपुल साहित्य रचा है उपन्यास, कहानी, आलेख, नाटक, व्यंग्य विधाओं में। संपादक भी वे आला दर्जे के थे।
ज्ञान, कला और स्वर की अधिष्ठात्री देवी माता सरस्वती की आराधना से ज्ञान की वृद्धि होती है। माता सरस्वती ज्ञान, कला और स्वर की प्रमुख देवी है। मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी माता सरस्वती की आराधना और उनकी कृपा से ज्ञानी बन सकता है। माघ बसंत पंचमी को पूजित होने वाली देवी माता सरस्वती नवदुर्गा का ही एक रूप है ।
आज (5जनवरी)परमहंस योगानंद की जयंती है। उन्होंने पूरी दुनिया में क्रिया योग को फैलाया। खासकर, अमेरिका में स्थापित अपने आश्रम से लोगों को इस योग से परिचित कराया। अमेरिका में ही उनका निधन हुआ। इसका उन्हें पूर्वाभास भी हो गया था। ऐसे योगी थे, जिनके चेहरे पर मुस्कान मृत्यु के बाद भी बनी रही। उनके बाल काले ही रहे।
भारतीय समाज में शास्त्रों की अहम भूमिका के बावजूद गुरु के महत्व को उससे ऊपर रखा गया है। यह महत्व यहां भी परिलक्षित होता है किह शास्त्र और लोक, संत और आचार्य, ज्ञानी और मूरख सबने गुरु के महत्व को स्वीकार किया है।
शहर में जयपाल सिंह नाम का स्टेडियम बर्बाद हो गया। उनके गांव में उनका घर ढह रहा है। उनकी कब्र भी गांव में उपेक्षित है। हम अपने नायकों का इसी तरह सम्मान करते हैं। जबकि बिरसा मुंडा के बाद जयपाल मुंडा ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिनकी आवाज देश में नहीं नहीं, विदेशों में भी गूंजती थी।
लोकनामा